जीवन के इस दौर में, मैं और मेरी तनहाई ,दोनो अक्सर बाते करते है…
तू ना होती तो कैसा होता ,तू होती तो ऐसा होता…
तनहाई…
है साथ मेरे शैदाई, मैं और मेरी परछाई
हर सम्त जिधर देखूँ, हर मोड़ पे तनहाई
शैदाई दीवानगी
सम्त दिशा
बस्ती की गलियों में, अपना न पराया है
दिखती है गली कूचे, हर रुख़ पे सितम ज़ाई
सितम ज़ाई अत्याचार
ख़ल्वत थी जवानी की, ‘आदत कहते कोई
मशगूल कहे कोई, कोई कहे सौदाई
ख़ल्वत एकांतवास
सौदाई पागलपन
अब तो न रहा हमदम, हमराह तमाशाई
इस दिल को है बहलाती, रातों की वो शहनाई
अफ़लाक की लाली ये, किस रंगे हीना छाई
दामन पे किसी के क्यूँ, रंगे ख़ूँ की आराई
अफ़लाक अनेक आसमाँ
आराई डेकोरेशन
ख़ूँ ख़ून
रातों के अंधेरों में, शम्मा’अ है सितारों की
फिर चाँद वो जलता क्यूँ, देख अपनी शनासाई
शनासाई संबंध
दस्तक दी ख़ुदा ने जब, दर पर मिरे फ़रमाई
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ, बिन तेरे ओ हरजाई
हरजाई आवारा
सजदा तेरा शुक्राना, छोड़ा न मुझे तनहा
उस वक़्ते नज़ा’ में दी, रब साथ ये तनहाई
वक़्त ए नज़ा आख़री साँस का वक़्त
डॉ नम्रता कुलकर्णी ‘हया’
वज़्न
221 1222 // 221 1222
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
تنہائی…
ہے ساتھ میرے شیدائی , میں اور میری پرچھائی
ہر سمت جدھر دیکھوں, ہر موڑ پے تنہائی
بستی کی گلیوں میں, اپنا نہ پرایا ہے
دکھتی ہے گلی کوچے, ہر رخ پے ستم زائی
خلوت تھی جوانی کی, عادت کہتے کوئی
مشگول کہے کوئی, کوئی کہے سودائی
اب تو نہ رہا ہمدم, ہمراہ تماشائی
اس دل کو ہے بہلاتی, راتوں کی وو شہنائی
افلاک کی لالی یہ, کس رنگ ہینا چھائی
دامن پے کسی کے کیوں, رنگے خوں کی آرائی
راتوں کے اندھیروں میں, شمع ہے ستاروں کی
پھر چاند وو جلتا کیوں, دیکھ اپنی شناسائی
دستک دی خدا نے جب, در پر مرے فرمائی
جاؤں تو کہاں جاؤں, بن تیرے و ہرجائی
سجدہ تیرا شکرانہ, چھوڑا نہ مجھے تنہا
اس وقت نزاع میں دی, رب ساتھ یہ تنہائی
ڈاکٹر نمرتا کلکرنی ‘حیا ‘
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